नहीं, यह वीडियो गज़ा के लिए समर्थन की अपील करने पर सऊदी अरब में इमाम की गिरफ़्तारी नहीं दिखाता

लेखक: मोहम्मद सलमान
नवंबर 9 2023

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नहीं, यह वीडियो गज़ा के लिए समर्थन की अपील करने पर सऊदी अरब में इमाम की गिरफ़्तारी नहीं दिखाता

दावा है कि सऊदी अरब की पुलिस ने अरब शासकों से गज़ा के लोगों का समर्थन करने की अपील करने पर इमाम को मंच से गिरफ़्तार कर लिया. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

फैक्ट चैक

निर्णय असत्य

वीडियो के साथ किया जा रहा दावा ग़लत है और वीडियो सऊदी अरब की 2018 की एक घटना को दर्शाता है. इसका इज़राइल-हमास युद्ध से कोई संबंध नहीं है.

क्लेम आईडी c31ae904

दावा क्या है? 

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पुलिस की पोशाक में नज़र आ रहा एक व्यक्ति दो लोगों के साथ मिलकर एक व्यक्ति को ज़बरदस्ती मिम्बर (मंच) से उठाकर ले जाते दिख रहे हैं. इस वीडियो को शेयर करते हुए दावा किया जा रहा है कि सऊदी अरब की पुलिस ने अरब शासकों से गज़ा के लोगों का समर्थन करने की अपील करने पर इमाम को मंच से गिरफ़्तार कर लिया.

कई यूज़र्स ने वीडियो को इसी दावे के साथ एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर शेयर किया है. इन पोस्ट्स को हज़ारों की तादाद में व्यूज़ मिल चुके हैं. ऐसे ही दावों के साथ शेयर किये गए पोस्ट्स के आर्काइव वर्ज़न यहां, यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

वायरल पोस्ट के स्क्रीनशॉट (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

हालांकि, वीडियो के साथ किया जा रहा दावा ग़लत है और वीडियो सऊदी अरब की 2018 की एक घटना को दर्शाता है, जहां एक मस्जिद के आधिकारिक इमाम की अनुपस्थिति में उनके स्थान पर खुतबा (उपदेश) देने वाले एक व्यक्ति को सुरक्षाबलों ने बाहर कर दिया था. 

सच्चाई क्या है? 

जब हमने रिवर्स इमेज सर्च की मदद से वीडियो खोजना शुरू किया तो हमें यह मार्च 2018 में कई यूट्यूब चैनलों पर अपलोड हुआ मिला. इससे यह साफ हो गया कि इस वीडियो का इज़राइल-हमास के बीच जारी युद्ध से कोई लेना-देना नहीं है.

वायरल वीडियो और 2018 यूट्यूब वीडियो का तुलनात्मक विश्लेषण (सोर्स: एक्स, यूट्यूब/स्क्रीनशॉट)

इस संबंध में मीडिया रिपोर्ट्स खंगालने पर हमारे सामने कई अरबी भाषा की रिपोर्ट्स सामने आईं जिनमें इस घटना का ज़िक्र किया गया है. 2 मार्च 2018 को प्रकाशित ‘सबक़’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सऊदी अरब के मदीना प्रांत के यानबू में यानबू अल-नखल केंद की एक मस्जिद में मौजूद नमाज़ी उस वक़्त हैरान रह गए जब एक व्यक्ति मस्जिद के अधिकारिक इमाम के पहले मिम्बर (मंच) पर चढ़ गया और ख़ुतबा (धार्मिक उपदेश) देने लगा.

रिपोर्ट में बताया गया है कि वह व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार था. वह अबाया पहनकर मंच पर चढ़ा था ताकि नमाज़ियों को विश्वास हो कि वह एक इमाम है. हालांकि, मस्जिद में मौजूद लोगों ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन उसने मंच से नीचे उतरने से इंकार कर दिया. इसके बाद, मस्जिद के सुरक्षाकर्मियों ने आकर उस व्यक्ति को वहां से हटाया. बाद में, मस्जिद के आधिकारिक इमाम ने ख़ुतबा दिया और नमाज़ पूरी करायी.

‘सबक़’ रिपोर्ट में वीडियो का स्क्रीनशॉट (सोर्स: सबक़/स्क्रीनशॉट)

वहीं, न्यूज़ आउटलेट्स अनावीन और अल यौम की 2 मार्च, 2018 की रिपोर्ट में मदीना क्षेत्र में इस्लामी मामलों के मंत्रालय की शाखा के आधिकारिक प्रवक्ता, माजिद बिन ग़ालेब अल-मुहम्मदी के हवाले से बताया गया है कि यानबू अल-बहर में मस्जिद में एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ने मस्जिद में ख़ुतबा (उपदेश) देने की कोशिश की, और जब वह मंच पर चढ़ गया तो अधिकारियों ने उसको जबरन नीचे उतारा, और मस्जिद के आधिकारिक इमाम ने शुक्रवार की नमाज़ और ख़ुतबा पूरा किया.

इस घटना पर हमें 3 मार्च, 2018 को प्रकाशित बीबीसी अरबी की एक रिपोर्ट मिली जिसमें सऊदी सरकार के सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि वीडियो में दिखाई देने वाला व्यक्ति मानसिक बीमारी से पीड़ित है और उसने आधिकारिक इमाम की अनुपस्थिति का फ़ायदा उठाया और मंच पर चढ़ गया.

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस घटना को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है. कुछ लोगों का कहना है कि वह व्यक्ति मानसिक बीमार था और आधिकारिक तौर पर ख़ुतबा देने के लिए अधिकृत नहीं था. वहीं, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सऊदी सरकार की मनोरंजन प्राधिकरण की नीतियों की आलोचना के कारण उन्हें मंच से जबरन हटा दिया गया. इसको लेकर कुछ एक्स यूज़र ने बुजुर्ग व्यक्ति को मंच से हटाने के तरीके की निंदा की और अपमानजनक बताया.

निर्णय 

वीडियो के साथ किया जा रहा दावा कि सऊदी अरब में एक इमाम को पुलिस ने इसलिए गिरफ्तार कर लिया क्योंकि वह सऊदी शासकों से गाजा के लोगों का समर्थन करने की अपील कर रहा था, ग़लत है. दरअसल, वीडियो में 2018 की एक घटना को दिखाया गया है जहां कथित तौर पर एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ने मस्जिद के आधिकारिक इमाम की अनुपस्थिति में उनकी जगह ख़ुतबा (उपदेश) देने लगा था. इसलिए, हम वायरल दावे को ग़लत मानते हैं. 

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हमारे जीवन पर असर डालने वाले फैसलों के लिए हम सूचना पर भरोसा करते हैं, लेकिन इंटरनेट के जरिए ग़लत सूचनाएं इतनी तेजी से लोगों तक पहुंचाई जा रही है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.